अफ़सोस क्या करें हम ये रश्मे दुनिया है -
निभा जाओ तुम भी ज़माने के दस्तूर,
न पहचाने की वो अदायगी है ख़ूबसूरत
हैं टूटती बूंदें आखिर बिखरने को मजबूर,
हिसाब क्या करें सुबह की धूप के लिए -
यूँ भी ज़िन्दगी में दर्दो अलम हैं भरपूर,
ये सितारों की भीड़, फिर रात की नीलामी
ख़्वाबों न छुओ मुझे, हूँ मैं थकन से चूर,
वो सभी मरहम दे न सके राहतें उम्रभर -
लौटा दिए, माना है मंज़िल बहुत ही दूर,
न देखो मुझे फिर उसी अंदाज़े वफ़ा से
ग़र ज़िन्दगी रही तो लौट आएंगे ज़रूर,
--- शांतनु सान्याल
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