04 अगस्त, 2010

दो शब्द

कुछ स्वप्न मधुर पलकों में बिछे रहने दो --


दीर्घ निशि, मद्धम शशि, बोझिल वातायन                            

कुछ स्मृति गुच्छ पहलू में खिले रहने दो /

अपने सांचे में न ढाल हर किसी को -

आत्मीयता न सही, हाथ तो मिले रहने दो /

-- शांतनु सान्याल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past