06 अगस्त, 2010

दो शब्द

दो शब्द


इस भग्न देवालय के प्रस्तर हों फिर जागृत /

गोधुली में शंख ध्वनि, तुलसी तले पंचप्रदीप

निर्भय सांध्य आरती हों, उद्घोषित आर्यावृत /

महासिंधु के उच्च तरंगों में गूंजे विजय गान

ऋचाओं द्वारा अभिमंत्रित हों, बरसे ज्ञानामृत /

- शांतनु सान्याल

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