अट्टहास के बीच ज़िन्दगी बेलिबास खड़ी
वक़्त की मेहरबानियाँ भी कुछ कम नहीं,
खींच लो जितना चाहों सांसों की रफ़्तार -
मज़िल पे कभी तुम और कभी हम नहीं,
इस दौर में हर कोई, खुद से है मुख़ातिब
आइना ख़ामोश, कि मुझे भी शरम नहीं,
बाँध लो निगाहों में पट्टियाँ ये रहनुमाओं
जान के भूली है राहें, मेरा कोई वहम नहीं,
मालूम है मुझे ज़माने की रस्मे वफ़ादारी
दौलत पे निगूँ सर, इनका कोई धरम नहीं,
वो फिर बनेगे शहंशाह लूट कर सारा शहर
करो राजतिलक, रोके कोई वो क़सम नहीं,
इस तरह जीने की आदत मुझे रास नहीं -
ये ज़हर है मीठा, ये इलाजे मलहम नहीं,
उठो भी आसमानों से दहकते शक्ले तूफां
थाम ले शैलाबे जुनूं, किसी में वो दम नहीं.
-- शांतनु सान्याल
वक़्त की मेहरबानियाँ भी कुछ कम नहीं,
खींच लो जितना चाहों सांसों की रफ़्तार -
मज़िल पे कभी तुम और कभी हम नहीं,
इस दौर में हर कोई, खुद से है मुख़ातिब
आइना ख़ामोश, कि मुझे भी शरम नहीं,
बाँध लो निगाहों में पट्टियाँ ये रहनुमाओं
जान के भूली है राहें, मेरा कोई वहम नहीं,
मालूम है मुझे ज़माने की रस्मे वफ़ादारी
दौलत पे निगूँ सर, इनका कोई धरम नहीं,
वो फिर बनेगे शहंशाह लूट कर सारा शहर
करो राजतिलक, रोके कोई वो क़सम नहीं,
इस तरह जीने की आदत मुझे रास नहीं -
ये ज़हर है मीठा, ये इलाजे मलहम नहीं,
उठो भी आसमानों से दहकते शक्ले तूफां
थाम ले शैलाबे जुनूं, किसी में वो दम नहीं.
-- शांतनु सान्याल
बहुत बढ़िया ग़ज़ल |
जवाब देंहटाएंकृपया मेरी रचना देखें और ब्लॉग अच्छा लगे तो फोलो करें |
सुनो ऐ सरकार !!
और इस नए ब्लॉग पे भी आयें और फोलो करें |
काव्य का संसार
सभी मित्र गण को दिल की गहराइयों से शुक्रिया, चर्चा मंच पर शामिल करने के लिए अनेकों धन्यवाद, ओजस्वी जी आप रचनाएं अपनी वेब साईट में शामिल कर सकते हैं, नमन सह.
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