21 जून, 2024

पुनर्प्राप्ति - -

दीर्घ तपते दिनों के बाद, सांध्य वृष्टि 

की तरह तुम्हारी आंखों में कहीं 

राहतों के द्वार खुल से चले 

हैं, निःशब्द निहारते हुए 

यूँ लगे असंख्य 

कविताएं 

तुम्हारे 

अधर तले निशि पुष्प की तरह पुनः 

खिले हैं । इक मीठा सा एहसास

जो बांधे रखता है एक दूजे 

को अथाह गहराइयों 

तक, एक रास्ता

जो रहस्यमय 

हो कर भी

हाथ

बढ़ाए पहुंचता है धुंधभरी खाइयों 

तक । एक हल्का सा मुलायम

स्पर्श शिराओं में घोल जाता 

है अनाम सुरभित लहर,

भटके हुए पथिक

को जैसे मिल 

जाए छूटा

हुआ

अपना घर ।

- - शांतनु सान्याल




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