अहरह एक ही हिसाब किताब, अहर्निश एक ही जवाब, बस जी रहे हैं, यही तो है जीवन का
निर्वहन, शपथ समारोह, सुगंधित फूलों
का स्तवक, स्वागत गीत, मिथ्या -
प्रलोभन, सभी खड़े हैं हाथों
में ले कर सपनों के झुन
झुने, तथाकथित
लोकतांत्रिक
उत्सव का
पुनः
समापन, बस जी रहे हैं, यही तो है जीवन का
निर्वहन । सुर असुर सभी हैं लालायित,
निस्तब्ध हो चुका जन समुद्र मंथन,
अंकों के खेल में जो जीता वही
बना राजन, यथावत रहेगा
हासिए पर प्रजा का
स्थान, अट्टहास
करता रहा
हमेशा
की
तरह सिंहासन, बस जी रहे हैं, यही तो है जीवन
का निर्वहन, अपरिवर्तनशील पंचवर्षीय
भजन कीर्तन ।
- - शांतनु सान्याल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें