21 जून, 2024

भूमिका - -

सूखे पत्तों की नियति जो भी 

हो, लेकिन प्रकृति को पुनः 

जीवन दान देने में उनकी 

भूमिका अपने आप 

में है अप्रतिम !

ग़र समझ

पाए

तो,

तुम फलाने के बेटे हो शायद !

जिनसे मेरी चालीस साल 

की मित्रता है, तुमसे 

कुछ दिल की 

बात साझा 

कर 

सकता हूँ, जितना वक़्त के साथ 

नए चेहरों से मित्रता का 

दायरा बढ़ता चला 

जा रहा है

उतना 

ही 

अदृश्य छतरी के नीचे आश्रय 

का वृत्त भी बढ़ चला है, 

जिस छतरी को 

गुमशुदा सोचा 

था वो 

क्रमशः आकाश हो चला है, 

विस्तृत खुला खुला 

आसमान, दर -

असल टहनी 

से गिरते 

पत्तों

का 

हिसाब कोई नहीं रखता, बस

उसका आख़री ठिकाना

पृथ्वी का एक मुश्त

टुकड़ा होता है,

जिसे छू कर

उसे मोक्ष

मिलती

है ।

- - शांतनु सान्याल 


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