12 जून, 2024

मनोभ्रंश - -

ऐनक है सामने घूरता हुआ, हम तलाशते हैं

उसे न जाने कहाँ कहाँ, कौन रोकता है

ज़िन्दगी को अदृश्य डोर से पीछे,

बिखरे पड़े हैं स्मृति बूंद हर

तरफ़ यहाँ वहाँ । उम्र

के अंतिम पड़ाव

पर रुक जाते

हैं शब्दों के 

जुलुस

बस यही तो है उल्टी गिनती वाला मनोभ्रंश,

मुझे ज्ञात है तुम्हारे उकताहट का रहस्य,

मिठास में बंधा हुआ मद्धम विष 

दंश । तुम जानते हो अच्छी

तरह से मेरी दुर्बलताओं

के कारण, रिक्त थाल

पर बिखरा पड़ा 

है इंद्रधनुषी 

आवरण ।

- - शांतनु सान्याल


3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 13 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना

    जवाब देंहटाएं

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