बूंद बूंद ओस रुकी है कहीं, दिगंत के
नयन कोर, अंगुष्ठ और तर्जनी
के मध्य है कहीं मुहाने की
ज़मीं, देखती है जिसे
मेरी ज़िन्दगी
हो कर
आत्म विभोर, यहां अष्ट प्रहर चलता
रहता है क्रय विक्रय, कदाचित हो
निस्तब्धता तुम्हारी ओर, बूंद
बूंद ओस रुकी है कहीं,
दिगंत के नयन
कोर। सभी
स्रोत हैं
रुके रुके से तुम्हारी भव्यता के आगे,
सभी नदियों का अंत है निश्चित,
सांझ घिरते ही लौट आएंगे
सभी विहग वृन्द, अपने
अपने घर, तुम हो
वहीं अपनी
जगह
स्थिर, समय चक्र अपनी लय पर है
भागे, बिखरे पड़े हैं दूर दूर तक
अतीत के सभी छिन्न -
भिन्न पृष्ठ, क्लांत
रात्रि खड़ी है
अपने
दहलीज़ पर एकाकी, सुदूर धुंध में -
है कहीं कांपता हुआ निरीह
भोर, बूंद बूंद ओस
रुकी है कहीं,
दिगंत के
नयन
कोर।
* *
- - शांतनु सान्याल
18 दिसंबर, 2021
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 19 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंबहुत ही शानदार सृजन आदरणीय सर
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंवाह! हमेशा की तरह शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंवाह बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंआदरणीय शांतनु जी,
जवाब देंहटाएंआपके सृजन में लयात्मकता खोजते हुए कुछ इसतरह प्रयास करता हूँ:
आत्म विभोर, यहां अष्ट प्रहर,
चलता रहता है क्रय विक्रय,
कदाचित हो निस्तब्धता तुम्हारी ओर,
बूंद बूंद ओस रुकी है कहीं,दिगंत के नयन कोर।
सुंदर शब्द समायोजन। साधुवाद१--ब्रजेंद्रनाथ
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंवाह ! चंद पंक्तियों में ही समग्र जीवन-दर्शन !
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
जवाब देंहटाएं