08 दिसंबर, 2021

कुछ याद रहा कुछ भूल गए - -

कोई चिड़िया थी, या कोई बल
खाती हुई कटी पतंग, बहुत
दूर किसी टीले से उसने
 समंदर को देखा
होगा,  न
चाह
कर भी ज़िन्दगी यहां बहुत - -
कुछ करा जाती है, दिल
को कोई देखता
नहीं, डूबती
नज़र
को
देखा होगा, उनकी चाहतों
का दरिया मुहाने तक
पहुँचता ही नहीं,
किसी
अनजान पहाड़ी से शाम के
मंज़र को देखा होगा,
परछाइयों के
शहर में
तुम
ढूंढते हो गुमसुदा जिस्म को,
बियाबां रात के सीने पर,
ओस के असर को
देखा होगा,
साहिल
पर
हैं बिखरे हुए अनगिनत
सीपों की कहानियां,
गहरी नींद में
उसने
किसी ख़्वाब ए रहगुज़र को
देखा होगा।
* *
- - शांतनु सान्याल
 

1 टिप्पणी:


  1. चाह
    कर भी ज़िन्दगी यहां बहुत - -
    कुछ करा जाती है, दिल
    को कोई देखता
    नहीं, डूबती
    नज़र को देखा होगा
    वाह!!!
    बहुत सटीक एवं लाजवाब।

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