बहुत दीर्घ, नहीं होते जीवन के रास्ते, फिर भी
कोई नहीं करता प्रतीक्षा, बेवजह किसी
के वास्ते, सुदूर उस मोड़ से कहीं
मुड़ गए सभी यादों के साए,
मील का पत्थर रहा
अपनी जगह
यथावत,
उसे
क्या लेना देना, कोई आए या जाए, न जाने क्या
क्या न लिखता रहा वो उम्र भर, फिर भी
अहसास की डायरी रही अधूरी, उस
एक धुंध भरे पड़ाव में आकर
उसने छोड़ दी आगे की
डगर, ख़त्म कहां
होती है मगर
अंतर्यात्रा,
जिधर
भी देखा घूमते प्रतिबिंबों की सिवा कुछ भी न - -
था, ताउम्र करता रहा अनगिनत हिसाब
किताब, अंत्यमिल में लेकिन प्रश्न
चिन्हों के सिवा कुछ भी न था,
मुश्किल था लौट के
आना हालांकि
अतीत की
आवाज़
आती
रही रुक रुक कर दूर तक, जब टूटा गुमनाम - -
कोई यायावर तारा, एक मौन अट्टहास
बिखरा हुआ था, अंतरिक्ष में दूर
दूर तक - -
* *
- - शांतनु सान्याल
02 दिसंबर, 2021
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०३-१२ -२०२१) को
'चल जिंदगी तुझको चलना ही होगा'(चर्चा अंक-४२६७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
ताउम्र करता रहा अनगिनत हिसाब
जवाब देंहटाएंकिताब, अंत्यमिल में लेकिन प्रश्न
चिन्हों के सिवा कुछ भी न था,
कितना भी हिसाब-किताब कर लो जीवन सफर में फिर भी प्रश्नों का सिलसिला बना ही रहता है।
बहुत ही सुन्दर सृजन।
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी में खो दिया जो, तू न कर उसका हिसाब,
अपने हाथों खुद तू ही, अपना मुक़द्दर अब संवार !
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