मन की अगम गहराई जाने न कोई,
सतह को छू कर बस मुस्कुरा
जाते हैं लोग, जल चक्र
में थे सभी अटके
हुए, मौसम
का यूँ
सहसा रुख़ बदलना पहचाने न कोई,
मन की अगम गहराई जाने न
कोई। कौन डूबे कहां, किस
अंध घाटी के अंदर,
कहना नहीं
आसान,
इसी
पल में है समाहित सारा ब्रह्माण्ड - -
और पलक झपकते ही उस
पार बिखरा हुआ सारा
आसमान, सांस
के साथ ही
उठते
गिरते हैं चाहतों के रंगीन यवनिका,
नेपथ्य के हाथों में है अदृश्य
डोर, परम सत्य को
जान कर भी
उसे माने
न कोई,
मन की अगम गहराई जाने न कोई।
कोहरे के सीढ़ियों से उतरता है
धीरे धीरे आख़री पहर का
चाँद, तुम हो दिल के
क़रीब या रस्म
अदायगी
है ये
ज़िन्दगी, उड़ते हुए मेघ कणों को है
छूने की आस या मरू थल के
सीने में है भटकती हुई
कोई सदियों की
प्यास, किसी
चकमक
पत्थर
से
अपने आप उठती हैं चिंगारियां या
कुछ सुख के पल आज भी हैं
मेरे आसपास, अजीब सी
है ये नज़दीकियां,
दिल के क़रीब
हो कर भी
सभी,
दरअसल अपना माने न कोई, मन
की अगम गहराई
जाने न
कोई।
* *
- - शांतनु सान्याल
कोई।
* *
- - शांतनु सान्याल
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१६-१२ -२०२१) को
'पूर्णचंद्र का अंतिम प्रहर '(चर्चा अंक-४२८०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंबेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंजीवन का 'अशेष* संदेश छिपा है इन पंक्तियों में शांतनु जी, कि....
जवाब देंहटाएंअपना माने न कोई, मन
की अगम गहराई
जाने न
कोई।....बहुत सुंदर कविता
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंलाजवाब रचना।
जवाब देंहटाएंबधाई💐
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंबेहतरीन भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंदिल की अगम गहराई जाने ना कोई
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गहन अर्थ समेटे
लाजवाब भावाभिव्यक्ति
वाह!!!
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंसुंदर,सार्थक तथा गूढ़ रचना ।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंवाह बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
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