ये धूप - छांव का अनुबंध है
बहोत नाज़ुक, कब बदल
जाए रंगीन परदों का
जादू कोई जाने
ना, कल
और
आज के दरमियां बहुत कुछ
बदल गया, कल मेरा
वजूद किसी राजा
से कम न था,
आज हूँ
भीड़
में भी अकेला, जाहिर है अब
मुझे कोई पहचाने ना। इस
रंगमंच में सभी को है
निभाना अपना
अपना
किरदार, कभी भरपूर सभागृह,
इत्र में डूबी हुई सांसे करे
इंतज़ार, और कभी
ज़िन्दगी एक
शब्द भी
जाने
ना। ख़त ओ किताबत मेरी कुछ
कम न थी, लेकिन जवाब थे
कि गुम हो गए लौटते
हुए, किसे दोष दें,
जब बहुत
अपना
कोई, हमें अपना ही माने ना।
- - शांतनु सान्याल
बहोत नाज़ुक, कब बदल
जाए रंगीन परदों का
जादू कोई जाने
ना, कल
और
आज के दरमियां बहुत कुछ
बदल गया, कल मेरा
वजूद किसी राजा
से कम न था,
आज हूँ
भीड़
में भी अकेला, जाहिर है अब
मुझे कोई पहचाने ना। इस
रंगमंच में सभी को है
निभाना अपना
अपना
किरदार, कभी भरपूर सभागृह,
इत्र में डूबी हुई सांसे करे
इंतज़ार, और कभी
ज़िन्दगी एक
शब्द भी
जाने
ना। ख़त ओ किताबत मेरी कुछ
कम न थी, लेकिन जवाब थे
कि गुम हो गए लौटते
हुए, किसे दोष दें,
जब बहुत
अपना
कोई, हमें अपना ही माने ना।
- - शांतनु सान्याल
वक्त वक्त की बात है कभी पर्दे पर मुख्य भूमिका में नजर आनेवाला नायक /सितारा भी बदलते समय और परिस्थितियों के आगे बौना हो गौड़ भूमिका में नजर आता है। सार्थक रचना👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन.
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत गहन शब्द संयोजन।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।