नज़र में सूनापन, फिर भी
ज़िन्दगी मुस्कुराने के
बहाने तलाश
करे, वो
कोई
आशना चेहरा है या ख़्वाब
पिछले पहर का, दूर
जितना जाना
चाहूँ, वो
क़रीब
आने के बहाने तलाश करे।
मेरा पता है कहीं क्षितिज
की नाज़ुक लकीरों में
छुपा हुआ, वो अपने
सीने में अक्सर
मुझे छुपाने
के बहाने,
तलाश
करे। मैं चाह कर भी यूँ
निजात पा न सकूँ,
वो शख़्स मुझे,
हर लमहा
अपने
में समाने के बहाने, तलाश
करे। न उसके इख़्तियार
में है कुछ, न मेरे वश
में ज़रा भी, फिर
भी न जाने क्यूँ
वो मुझे से
लौट के न जाने के बहाने
तलाश करे।
- - शांतनु सान्याल
बहुत शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर और मार्मिक
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
हटाएंसुंदर नज्म
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
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