नदी और किनारे के
दरमियाँ
रहता है एक ख़ामोश सा
रिश्ता, डूबने का सुख
वही जाने जो
टूटने को
हो
तैयार । उठ गई रात ढले आसमां
की महफ़िल, फिर दिल में है
जागी सुबह की उम्मीद,
फिर कलियां हैं
खिलने को
बेक़रार ।
कहने को दूर दूर तक है एक न
ख़त्म होने वाली वीरानगी,
किसे ख़बर कितनी
दूर तक ले चले
ऐ बहती
हुई
दिल की आवारगी, न जाने इसे
है किससे यूँ मुक्कमल
मिलने का अशेष
इंतज़ार ।
- शांतनु सान्याल
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
हटाएंगजब की रुमानियत है आपकी इस रचना में । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05 -5 -2020 ) को "कर दिया क्या आपने" (चर्चा अंक 3692) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
हटाएंवाह !लाजवाब अभिव्यक्ति आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंसादर
असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
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