08 जून, 2020

आवाज़ जो लौट आए - -

ये सही है कि निगाहों से दूरी
रिश्तों को कमज़ोर कर
जाए, लेकिन ये भी
भी ग़लत नहीं
कि कोई
और
ज़ख्म मेरा भर जाए । किताबों
से निकल कर, कभी तू आ
इन बंजर ज़मीं के रास्ते,
मुमकिन है गहरी
नींद से ज़रा
उबर
जाए । अभी तो है हर तरफ़
नदी का भरपूर किनारा,
कुछ देर रहो दिल के
क़रीब अदृश्य
उफान की
तरह, किसे ख़बर कि कब ये
दिल से उतर जाए । सभी
को है कुछ न कुछ
शिकायत यूं
तो इस
ज़िन्दगी से, रास्तों की कमी
नहीं है लेकिन ज़रूरी
नहीं वो हमदर्द
सिर्फ़ मेरे
घर आए । तन्हा आवाज़ की
प्रतिध्वनि असरदार नहीं
होती, आओ मिल के
सभी दें आवाज़,
कि बेदर्द
ज़माना
हर हाल में वहीं ठहर जाए - -
* *
- - शांतनु सान्याल









6 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 09 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past