30 जून, 2020

असमाप्त - -

शब्द पहेलियों की तरह थे
उसके चेहरे के उतार
चढ़ाव, मुझसे
मिलने के
बाद
वो शख़्स सो न पाया तमाम
रात, हिसाब किताब की
फेहरिस्त शायद थी
बहोत ही लम्बी,
होंठ हिले,
आंखों
में उभरे कुछ अतीत के साए, - -
फिर भी वो खुल के रख
न पाया अपनी बात ।
दरअसल बहुत
कुछ ज़िन्दगी
में यूँ ही
रहती
हैं बेज़ुबान, ज़ख्म भर जाते हैं
वक़्त गुज़रते, छोड़ जाते हैं
तहे दिल खुरदरे निशान,
मिटते नहीं लेकिन
घात प्रतिघात ।
कुछ लम्हों
की उम्र
कभी
ख़त्म होती नहीं, ये दौड़ती हैं
उम्र भर सांसों के हमराह,
पल भर भी ये सोती
नहीं, चाहे दिन
हो या रात ।
- - शांतनु सान्याल





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