जनशून्य तटभूमि, या अनावृत वक्षस्थल,
लहरों का आघात निरंतर, कुछ
बुझते जलते अदृश्य आग्नेय -
कण, कभी तुम्हारे मध्य
कभी मेरे अंदर।
जीवन के
रूप
या मुहाने पर समर्पित जलधार, कहीं
उभरते जुगनुओं के बहते द्वीप,
कहीं टूटते रिश्तों के कगार।
निशि पुष्प की तरह
कभी महकते
अनुरागी
पल,
और कभी नीरवता फैलाए अपना - -
अंचल। फिर भी जीवन नदी बहे
निःशब्द अविरत,सांसों में
बांधे विस्तृत समुद्र -
सैकत।
* *
- शांतनु सान्याल
लहरों का आघात निरंतर, कुछ
बुझते जलते अदृश्य आग्नेय -
कण, कभी तुम्हारे मध्य
कभी मेरे अंदर।
जीवन के
रूप
या मुहाने पर समर्पित जलधार, कहीं
उभरते जुगनुओं के बहते द्वीप,
कहीं टूटते रिश्तों के कगार।
निशि पुष्प की तरह
कभी महकते
अनुरागी
पल,
और कभी नीरवता फैलाए अपना - -
अंचल। फिर भी जीवन नदी बहे
निःशब्द अविरत,सांसों में
बांधे विस्तृत समुद्र -
सैकत।
* *
- शांतनु सान्याल
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