अहाते की धूप को यूँ ही
चुपके से आने दो,इक
मुश्त रौशनी है
काफ़ी दिल
ए नाशाद
के लिए,
किस
किस का रोना रोएं जिसे
जाना है उसे जाने दो।
हमें अपने बेरंग
दर ओ दीवार
से कोई
शिकायत नहीं, काग़ज़ी
फूलों को देख ग़र
कोई बहके तो
बहक जाने
दो।
ये आईना है बहोत ही - -
बेमुरव्वत, कोई
समझौता नहीं
करता,उनकी
मर्ज़ी,
नाज़ुक शीशमहल बारहा
चाहे सजाने दो। ताश
के घर ही तो हैं
सभी, कोई
बादशाह
हो या
फ़क़ीर, ढहना तो है मुक़र्रर
इक दिन, चाहे घर
जितना ऊंचा
बनाने दो।
* *
- शांतनु सान्याल
चुपके से आने दो,इक
मुश्त रौशनी है
काफ़ी दिल
ए नाशाद
के लिए,
किस
किस का रोना रोएं जिसे
जाना है उसे जाने दो।
हमें अपने बेरंग
दर ओ दीवार
से कोई
शिकायत नहीं, काग़ज़ी
फूलों को देख ग़र
कोई बहके तो
बहक जाने
दो।
ये आईना है बहोत ही - -
बेमुरव्वत, कोई
समझौता नहीं
करता,उनकी
मर्ज़ी,
नाज़ुक शीशमहल बारहा
चाहे सजाने दो। ताश
के घर ही तो हैं
सभी, कोई
बादशाह
हो या
फ़क़ीर, ढहना तो है मुक़र्रर
इक दिन, चाहे घर
जितना ऊंचा
बनाने दो।
* *
- शांतनु सान्याल
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