न जाने वो कौन थे अजेय पथिक,
गुज़रे अंतिम प्रहर, देह रंगाए
राख, छोड़ गए दूर तक
सुलगते पैरों के
निशान।
न जाने वो कौन थे, किस चाह में
जीवन को बनाया महाज्वाल -
स्तूप, और मुस्कुराते हुए
किया सर्वस्व दान।
काश, वो महा -
मानव
फिर लौट आएं, और सिखाएं हमें -
स्वाधीनता का सत्य अभिप्राय,
पुनः एक बार मानवता का
रचे हम, वास्तविक -
संविधान।
* *
- शांतनु सान्याल
गुज़रे अंतिम प्रहर, देह रंगाए
राख, छोड़ गए दूर तक
सुलगते पैरों के
निशान।
न जाने वो कौन थे, किस चाह में
जीवन को बनाया महाज्वाल -
स्तूप, और मुस्कुराते हुए
किया सर्वस्व दान।
काश, वो महा -
मानव
फिर लौट आएं, और सिखाएं हमें -
स्वाधीनता का सत्य अभिप्राय,
पुनः एक बार मानवता का
रचे हम, वास्तविक -
संविधान।
* *
- शांतनु सान्याल
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