02 अप्रैल, 2015

उड़ने का अहसास - -

ये आहटें हैं बड़ी जानी पहचानी,
मुद्दतों बाद, फिर किसी 
ने शायद मेरी सांसों 
को छुआ है। 
न जाने क्यूँ अचानक दर ओ - -
दीवार महकने से लगे हैं, 
फिर मेरी तन्हाई 
को जाने 
कुछ तो हुआ है । अब तलक मेरे 
जज़्बात बंद थे कहीं  रेशमी 
कोष के अंदर, कुछ 
सहमे सहमे 
से कुछ 
बेचैन शायद, अभी अभी खुले हैं 
तेरी निगाहों के दरीचे ! अभी 
अभी मेरी नाज़ुक पंखों 
को कहीं उड़ने का 
अहसास 
हुआ है। फिर किसी ने शायद मेरी 
सांसों को छुआ है। 

* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
transformation-complete-melissa-leray

7 टिप्‍पणियां:

  1. हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (03-04-2015) को "रह गई मन की मन मे" { चर्चा - 1937 } पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आदरणीय मित्रों - - आप सभी का असंख्य धन्यवाद। नमन सह -

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