ये आहटें हैं बड़ी जानी पहचानी,
मुद्दतों बाद, फिर किसी
ने शायद मेरी सांसों
को छुआ है।
न जाने क्यूँ अचानक दर ओ - -
दीवार महकने से लगे हैं,
फिर मेरी तन्हाई
को जाने
कुछ तो हुआ है । अब तलक मेरे
जज़्बात बंद थे कहीं रेशमी
कोष के अंदर, कुछ
सहमे सहमे
से कुछ
बेचैन शायद, अभी अभी खुले हैं
तेरी निगाहों के दरीचे ! अभी
अभी मेरी नाज़ुक पंखों
को कहीं उड़ने का
अहसास
हुआ है। फिर किसी ने शायद मेरी
सांसों को छुआ है।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
transformation-complete-melissa-leray
मुद्दतों बाद, फिर किसी
ने शायद मेरी सांसों
को छुआ है।
न जाने क्यूँ अचानक दर ओ - -
दीवार महकने से लगे हैं,
फिर मेरी तन्हाई
को जाने
कुछ तो हुआ है । अब तलक मेरे
जज़्बात बंद थे कहीं रेशमी
कोष के अंदर, कुछ
सहमे सहमे
से कुछ
बेचैन शायद, अभी अभी खुले हैं
तेरी निगाहों के दरीचे ! अभी
अभी मेरी नाज़ुक पंखों
को कहीं उड़ने का
अहसास
हुआ है। फिर किसी ने शायद मेरी
सांसों को छुआ है।
* *
- शांतनु सान्याल
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हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (03-04-2015) को "रह गई मन की मन मे" { चर्चा - 1937 } पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंआदरणीय मित्रों - - आप सभी का असंख्य धन्यवाद। नमन सह -
जवाब देंहटाएंnice ..
जवाब देंहटाएंThanks respected madam
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