बूंद बूंद गिरती रही दिल पे तेरी, शबनमी
ओंठों की नमी, क़तरा क़तरा पिघलता
रहा रात भर, मेरे सीने की ज़मीं।
आसमां, चाँद ओ सितारे,
न जाने कब उभरे
और कब
न जाने डूब गए सारे। इक तेरे चेहरे के -
सिवा, गुज़िश्ता रात हमें कुछ याद
नहीं, वो कोई तैरता हुआ
कहकशां था या
ख़ला ए
जुनूं, हम बहते रहे बाहम न जाने कहाँ
तक, ख़ुदा क़सम हमें कुछ भी
याद नहीं।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
mull_sunset_from_ganavan_orig
ओंठों की नमी, क़तरा क़तरा पिघलता
रहा रात भर, मेरे सीने की ज़मीं।
आसमां, चाँद ओ सितारे,
न जाने कब उभरे
और कब
न जाने डूब गए सारे। इक तेरे चेहरे के -
सिवा, गुज़िश्ता रात हमें कुछ याद
नहीं, वो कोई तैरता हुआ
कहकशां था या
ख़ला ए
जुनूं, हम बहते रहे बाहम न जाने कहाँ
तक, ख़ुदा क़सम हमें कुछ भी
याद नहीं।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
mull_sunset_from_ganavan_orig
हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-04-2015) को "अरमान एक हँसी सौ अफ़साने" {चर्चा - 1943} पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
असंख्य धन्यवाद मित्र - - नमन सह
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