शायद वो कभी आए; सरे बज़्म भूली
याद की तरह, अपने दर्द ओ
अलम को यूँ ही सहलाए
रखिए।
वादियों में फिर धूप खिली है सहमी - -
सहमी, अहाते दिल के कुछ
मौसमी फूल सजाए
रखिए।
न जाने किस मोड़ पे उसका पता लिखा
हो, क़दीम ख़तों से यूँ ही दिल को
बहलाए रखिए।
हर एक दर
ओ बाम पे हैं यूँ तो चिराग़ रौशन, अंधेरों
से फिर भी ज़रा दोस्ती निभाए
रखिए। चाँद छुपते ही
फिर जागी हैं
किनारे
की सिसकियाँ, परछाइयों से गाहे बगाहे
ज़रा दामन बचाए रखिए। ये
आईना है बहोत ज़िद्दी;
कोई भी सुलह
नहीं करता,
बीते लम्हात के सभी अक्स दिल में - -
बसाए रखिए। नाज़ुक थे सभी
रिश्ते; टूट गए आहिस्ता
आहिस्ता,
फिर भी मुस्कुराने का गुमां यूँ ही बनाए
रखिए। निगाह अश्क से हैं लबरेज़;
ओठों पे अहसास शबनमी,
दिल ए बियाबां को
यूँ ही बारहा
महकाए रखिए। शायद वो कभी आए;
सरे बज़्म भूली याद की तरह,
अपने दर्द ओ अलम
को यूँ ही सहलाए
रखिए।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
याद की तरह, अपने दर्द ओ
अलम को यूँ ही सहलाए
रखिए।
वादियों में फिर धूप खिली है सहमी - -
सहमी, अहाते दिल के कुछ
मौसमी फूल सजाए
रखिए।
न जाने किस मोड़ पे उसका पता लिखा
हो, क़दीम ख़तों से यूँ ही दिल को
बहलाए रखिए।
हर एक दर
ओ बाम पे हैं यूँ तो चिराग़ रौशन, अंधेरों
से फिर भी ज़रा दोस्ती निभाए
रखिए। चाँद छुपते ही
फिर जागी हैं
किनारे
की सिसकियाँ, परछाइयों से गाहे बगाहे
ज़रा दामन बचाए रखिए। ये
आईना है बहोत ज़िद्दी;
कोई भी सुलह
नहीं करता,
बीते लम्हात के सभी अक्स दिल में - -
बसाए रखिए। नाज़ुक थे सभी
रिश्ते; टूट गए आहिस्ता
आहिस्ता,
फिर भी मुस्कुराने का गुमां यूँ ही बनाए
रखिए। निगाह अश्क से हैं लबरेज़;
ओठों पे अहसास शबनमी,
दिल ए बियाबां को
यूँ ही बारहा
महकाए रखिए। शायद वो कभी आए;
सरे बज़्म भूली याद की तरह,
अपने दर्द ओ अलम
को यूँ ही सहलाए
रखिए।
* *
- शांतनु सान्याल
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