उनिंद से हैं बोझिल सितारों की सुदूर अंजुमन, रात ढले महकना चाहे बेक़रार दिल का चमन,
प्रसुप्त कोशिकाओं में सजलता भर गया कोई,
न जाने कौन मधुऋतु की तरह छू गया अंतर्मन,
हवाओं में है अद्भुत सी मंत्रमुग्धता का एहसास,
वन्य नदी के किनार फिर खिल उठे हैं महुलवन,
एक मायावी तरंग जो शरीर से रूह तक है उतरे,
इक संदली स्पर्श जो कर जाए नम जीवन दहन,
हर तरफ हैं अनगिनत बंदिशों के पाषाणी दीवार,
जाने कौन खिंचे लिए जाए अपने साथ ज़बरन ।
- - शांतनु सान्याल