पतझर के पत्तों की तरह झर जाते हैं सभी चाहत, उम्र की गोधूलि में कोई भी साथ नहीं होता,
कुछ संभावनाएं रह जाती हैं शून्य
टहनियों में ज़रूर, जो ख़्वाबों
को मरने नहीं देती, ओस
बून्द की चाहत में
जागते हैं
अदृश्य
कोपल तमाम रात, सर्द रातों में उष्ण हथेलियों का
स्पर्श जीला जाता है सुबह तक, ज़िन्दगी हर
हाल में प्रतीक्षा करती है सूरज की प्रथम
किरण, खिलते हुए गुलाब की
पंखुड़ियों में कहीं रुकी
रहती है उम्मीद की
बून्द, आइने की
धूल हटाते
हुए हम
निहारते हैं अपना बिम्ब, चाहते हैं नई शुरूआत, - -
भूलना चाहते हैं उम्र का अंकगणित, अतीत
का हिसाब किताब, पाने खोने के खेल,
जटिल रिश्तों के भूल भुलैया, हम
जीना चाहते हैं सरल रेखा
की तरह अंतहीन, ये
और बात है कि
हम सफल
हो पाते
भी हैं
या नहीं, फिर भी हम मुस्कुराते हुए क़ुबूल करते हैं
वर्तमान को यथावत, दरअसल हर चीज़ के
लिए विकल्प मिलना आसान नहीं, इसी
एक बिन्दु पर आ कर हम मध्यम पथ
का करते हैं अनुसरण, दिल के
दरख़्त में सजाते हैं नाज़ुक
पत्तियां, देह की
शाखाओं
को कर
जाते
हैं जान बूझकर नज़रअंदाज़ - -
- - शांतनु सान्याल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें