24 नवंबर, 2024

कुछ पलों की चाहत - -

 कुछ देर काश और ठहरते, कुछ गिरह ए ताल्लुक़ात

ज़रा और भी खुलते, दूर तक बहते बहते कहीं
किसी मोड़ पर दो स्रोत अंदर तक एक दूजे
से मुक्कमल जा मिलते, कुछ देर काश
और ठहरते । प्रकाश स्तम्भ और
लहरों के मध्य एक मौन संधि
ज़रूरी है, कितना
कुछ क्यूं न हो
हासिल
इस
मुख़्तसर ज़िन्दगी में, मुहोब्बत के बग़ैर हर चीज़
अधूरी है, काश कुछ और उम्र की मियाद बढ़
जाए, हम बारहा तुम पर ही मरते, तुम्हारे
इश्क़ में जां से हज़ार बार गुज़रते,
कुछ देर काश और ठहरते ।
साहिल की अदृश्य
इबारतें उभरती
हैं दिगंत के
सप्त
रंगों में, गूँजती हैं प्रतिध्वनियां सुदूर माया मृदंगों
में, ये और बात है कि हम रहें न रहें फिर भी
हमारी दास्तां रहेगी मौसमी उमंगों में,
काश कुछ दूर और ज़िन्दगी के
सफ़र में एक संग निकलते,
चाँदनी रात में कुछ और
निखरते, कुछ और
भी महकते,
कुछ देर काश और ठहरते - - -
- - शांतनु सान्याल







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