कोहरे में डूबे हुए हैं दूर तक फूलों की घाटियां,
एक हलकी सी सरसराहट अभी तक है
ज़िन्दा हमारे दरमियाँ, कोई ख़्वाब
या अधूरी जन्म जन्मांतर की
प्यास, देह को लपटे हुए
हैं जैसे ख़्वाहिशों के
अमरबेल, जीवंत
हैं अभी तक
महकी
हुईं
चाँदनी रात में मुहोब्बत की परछाइयां, एक
हलकी सी सरसराहट अभी तक है ज़िन्दा
हमारे दरमियाँ । पारदर्शी खिड़कियों
के धरातल पर जमें हुए से हैं
उष्ण साँसों के वाष्प, या
जी उठे हैं गुज़रे हुए
मील के पत्थर,
शीशे के
सीने
पर
फिर तुमने उकेरा है मेरा नाम, सर्द रातों में -
अधर तले, पुनः जाग उठे हों जैसे बिंदु
बिंदु मधुमास, कश्मीरी शाल में गुथे
हुए हैं देह गंध के मीठे एहसास,
जीवित हो चले हैं फिर एक
बार रेशमी नज़दीकियां,
एक हलकी सी
सरसराहट
अभी
तक है ज़िन्दा हमारे दरमियाँ - -
- - शांतनु सान्याल
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