गुमशुदा ठिकाना खोजता है कोई आदिम सितारा, मृगजल भर
कर नयन ढूंढते हैं,
लुप्तप्राय
किनारा,
जी
उठे हैं सभी ख़्वाहिशें जीवाश्म
के देह से बाहर, सुना है
आज रात आसमान
से बरसेगी
अमृतधारा,
अक्सर
मुड़ के देखा किया, कोई न था
हद ए नज़र, बंद खिड़कियां
दरवाज़े फिर किस ने
नाम है पुकारा,
ख़ुश वहम
ही सही,
जो
ज़िंदगी को खिंचे लिए जाए, दर
ओ दीवार के बीच, यूँ ही
भटकता है दिल
बंजारा, हर
ओर
रौशनी हर सिम्त जश्न ए मसर्रत
का आलम, दो पल ही मिल
जाएं डूबने वाले को
तिनके का
सहारा ।
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 31 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसुन्दर | दीप पर्व शुभ हो |
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