30 सितंबर, 2024

अवगाहन - -

अंतिम अध्याय में सूर्य भी खो

देता है रौद्र रूप, समंदर में
काँपता सा रह जाता है
तेजस्वी धूप, दिल 
के शीशे में है
जड़ित
प्रणय का प्रतिफलन, बिंदु -
बिंदु जीवन भर का
एक अमूल्य
संकलन,
डूब
कर भी किसी और जगह
एक नई शुरुआत,
बारम्बार जन्म
के पश्चात
भी नहीं
मिलती
निजात, अजीब सा तिलस्मी
खिंचाव रहा हमारे दरमियान,
सुदूर दिगंत रेखा पे कहीं
मिलते हैं ज़मीं
आसमान ।।
- - शांतनु सान्याल


6 टिप्‍पणियां:

  1. प्रलय ,विनाश के बाद नवजीवन की आशा ही सृष्टि का आधार है।
    सुंदर अभिव्यक्ति सर।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. सृष्टि का चक्र
    क्षितिज की धुरी पर
    नित नए
    कलेवर में जीवन।
    अभिनंदन।

    जवाब देंहटाएं
  3. अंतिम अध्याय में सूर्य भी खो
    देता है रौद्र रूप, समंदर में
    काँपता सा रह जाता है
    अंतिम अध्याय की शायद यही परिणति है...
    बहुत सुन्दर सारगर्भित सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह क्या खूब ल‍िखा है ....निजात, अजीब सा तिलस्मी
    खिंचाव रहा हमारे दरमियान,
    सुदूर दिगंत रेखा पे कहीं
    मिलते हैं ज़मीं
    आसमान ।।....शानदार रचना शांतनु जी

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past