अंतिम अध्याय में सूर्य भी खो
देता है रौद्र रूप, समंदर में
काँपता सा रह जाता है
तेजस्वी धूप, दिल
के शीशे में है
जड़ित
प्रणय का प्रतिफलन, बिंदु -
बिंदु जीवन भर का
एक अमूल्य
संकलन,
डूब
कर भी किसी और जगह
एक नई शुरुआत,
बारम्बार जन्म
के पश्चात
भी नहीं
मिलती
निजात, अजीब सा तिलस्मी
खिंचाव रहा हमारे दरमियान,
सुदूर दिगंत रेखा पे कहीं
मिलते हैं ज़मीं
आसमान ।।
- - शांतनु सान्याल
प्रलय ,विनाश के बाद नवजीवन की आशा ही सृष्टि का आधार है।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति सर।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसृष्टि का चक्र
जवाब देंहटाएंक्षितिज की धुरी पर
नित नए
कलेवर में जीवन।
अभिनंदन।
अंतिम अध्याय में सूर्य भी खो
जवाब देंहटाएंदेता है रौद्र रूप, समंदर में
काँपता सा रह जाता है
अंतिम अध्याय की शायद यही परिणति है...
बहुत सुन्दर सारगर्भित सृजन ।
बहुत सुन्दर
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