30 सितंबर, 2024

अवगाहन - -

अंतिम अध्याय में सूर्य भी खो

देता है रौद्र रूप, समंदर में
काँपता सा रह जाता है
तेजस्वी धूप, दिल 
के शीशे में है
जड़ित
प्रणय का प्रतिफलन, बिंदु -
बिंदु जीवन भर का
एक अमूल्य
संकलन,
डूब
कर भी किसी और जगह
एक नई शुरुआत,
बारम्बार जन्म
के पश्चात
भी नहीं
मिलती
निजात, अजीब सा तिलस्मी
खिंचाव रहा हमारे दरमियान,
सुदूर दिगंत रेखा पे कहीं
मिलते हैं ज़मीं
आसमान ।।
- - शांतनु सान्याल


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