जी चाहता है बहुत दूर वादियों में कहीं खो जाना,धुंध भरी राहों
में, बूँद बूँद मुक्कमल बिखर
जाना, तुम्हारी गर्म साँसों
की तपिश में है मंज़िल
ए निशां, इक रूहानी
अनुबंध में हों जैसे
शमअ ओ
परवाना,
डूबता
चला जा रहा है मेरा वजूद अथाह
गहराई में, उस हसीन ख़्वाब
से भला कौन चाहेगा लौट
आना, इस नशीली
एहसास में
ज़िन्दगी
को
क़रार तो मिले, कुछ पल और
ज़रा पास ठहरो फिर चाहे
लौट जाना, यूँही देख
कर बढ़ जाती है
जीने की
शिद्दत
ए तिश्नगी, मंज़िल दर मंज़िल खुल
जाते हैं, निगाह ए मयख़ाना,
जी चाहता है बहुत दूर
वादियों में कहीं
खो जाना ।
- - शांतनु सान्याल
बहुत अच्छी कविता। बधाई।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 16 दिसंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंवाह अप्रतिम रचना
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