न जाने कौन कहाँ उतरे सभी तो हैं
एक ही कश्ती के मुसाफ़िर,
किसी घाट पर दीपमाला
बहे संग जलधार,
और किसी
तट पर
जा लगे सपनों का चन्द्रहार, कहीं से
निकले संकरी पगडण्डी और
पहुंचे किसी मीनाबाज़ार,
कहीं जीवन मूल्यों में
अपर्ण और कहीं
मूल्यों का
व्यापार,
न जाने कौन कहाँ से आ मिले इस -
पथ के मिलन बिंदु अनेक, कुछ
चाहें मिलना लहरों की तरह
निःशर्त, कुछ मिल कर
गुपचुप कर जाएँ
अंदरख़ाने
गर्त,
फिर भी जीवन स्रोत बहे अनवरत।
* *
- शांतनु सान्याल
एक ही कश्ती के मुसाफ़िर,
किसी घाट पर दीपमाला
बहे संग जलधार,
और किसी
तट पर
जा लगे सपनों का चन्द्रहार, कहीं से
निकले संकरी पगडण्डी और
पहुंचे किसी मीनाबाज़ार,
कहीं जीवन मूल्यों में
अपर्ण और कहीं
मूल्यों का
व्यापार,
न जाने कौन कहाँ से आ मिले इस -
पथ के मिलन बिंदु अनेक, कुछ
चाहें मिलना लहरों की तरह
निःशर्त, कुछ मिल कर
गुपचुप कर जाएँ
अंदरख़ाने
गर्त,
फिर भी जीवन स्रोत बहे अनवरत।
* *
- शांतनु सान्याल
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