हम जहाँ से चले थे वहां कोई सायादार -
दरख़्त न था, लिहाज़ा हमने मौसम
से निःशर्त अनुबंध कर लिया,
पतझर हो या मधुऋतु
अनुभूति का रहस्य
अपनी जगह,
हमने
अपनी साँसों में सदाबहार सुगंध भर लिया।
हमें मालूम है तपते राहों पर, नंगे पाँव
चलने का दर्द, अतः जीवन के
सभी धूसर कैनवासों को,
अपनी तरह से हमने
जलरंग कर
लिया।
तुम्हारे दहलीज़ में शायद आज भी उतरते
हैं वही धूप - छाँव के स्वरलिपि, हालांकि
हमने अपनी भावनाओं को बहोत
पहले से ही बेरंग कर लिया।
वो ख़त जो तुम तक न
पहुँच पाए कभी,
दिल के
सन्दूक में हमने उन्हें तह करके रख दिया,
उम्र की सिलवटों को रोकना नहीं
आसान इसलिए मुस्कुराहटों
से हमने सभी कमज़ोर
तटबंध भर लिया।
अपनी साँसों
में सदाबहार सुगंध भर लिया। - - - - - - -
* *
- शांतनु सान्याल
दरख़्त न था, लिहाज़ा हमने मौसम
से निःशर्त अनुबंध कर लिया,
पतझर हो या मधुऋतु
अनुभूति का रहस्य
अपनी जगह,
हमने
अपनी साँसों में सदाबहार सुगंध भर लिया।
हमें मालूम है तपते राहों पर, नंगे पाँव
चलने का दर्द, अतः जीवन के
सभी धूसर कैनवासों को,
अपनी तरह से हमने
जलरंग कर
लिया।
तुम्हारे दहलीज़ में शायद आज भी उतरते
हैं वही धूप - छाँव के स्वरलिपि, हालांकि
हमने अपनी भावनाओं को बहोत
पहले से ही बेरंग कर लिया।
वो ख़त जो तुम तक न
पहुँच पाए कभी,
दिल के
सन्दूक में हमने उन्हें तह करके रख दिया,
उम्र की सिलवटों को रोकना नहीं
आसान इसलिए मुस्कुराहटों
से हमने सभी कमज़ोर
तटबंध भर लिया।
अपनी साँसों
में सदाबहार सुगंध भर लिया। - - - - - - -
* *
- शांतनु सान्याल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें