तलाश ए सुकूं थी उम्र से
कहीं ज़ियादा तवील,
तीर सीने के पार
कब हुआ
कुछ
भी ख़बर नहीं। दर्द ओ
मुस्कान के बीच थी
इक छुअन नादीद,
फ़रमान ए
हाक़िम
का
हम पे अब कोई असर
नहीं। खुले दिल
मिलें जहाँ
राजा
ओ
रंक दोस्तों की तरह, ये
जगह यूँ तो है बेहद
हसीं लेकिन मेरा
शहर नहीं।
तूफ़ान
की
है अपनी अलग ही
मजबूरियां शाम
से,रहने दें
अभी
तो है आधी रात आख़री
पहर नहीं। अब तुम
भी चाहो तो
आज़मा
लो
ईमान हमारा, हर सिम्त
है धुंध और दूर तक
कोई रहगुज़र
नहीं।
* *
- शांतनु सान्याल
कहीं ज़ियादा तवील,
तीर सीने के पार
कब हुआ
कुछ
भी ख़बर नहीं। दर्द ओ
मुस्कान के बीच थी
इक छुअन नादीद,
फ़रमान ए
हाक़िम
का
हम पे अब कोई असर
नहीं। खुले दिल
मिलें जहाँ
राजा
ओ
रंक दोस्तों की तरह, ये
जगह यूँ तो है बेहद
हसीं लेकिन मेरा
शहर नहीं।
तूफ़ान
की
है अपनी अलग ही
मजबूरियां शाम
से,रहने दें
अभी
तो है आधी रात आख़री
पहर नहीं। अब तुम
भी चाहो तो
आज़मा
लो
ईमान हमारा, हर सिम्त
है धुंध और दूर तक
कोई रहगुज़र
नहीं।
* *
- शांतनु सान्याल
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