इक आग की बारिश, और अंतहीन रात
की ख़ामोशी, ज़माने से बेख़ौफ़
यकजा ज़हर पीने की
ख़्वाहिश, न
चाँद
नज़र आया, न शब का गुज़रना याद - -
रहा, उफ़क़ पे हंगामा सा बरपा,
मुक़्तसर रात और तवील
ज़िन्दगी, यूँ गुज़री
हम अक्स
अपना
भूल गए, मंदिर ओ मस्जिदों में इश्तहार
ए गुमशुदगी लगा गया कोई,
हर सू थे यूँ तो मानोस
चेहरे, फिर भी न
जाने क्यूँ,
हम
अपना ठिकाना भूल गए, हमें तो मिल गए
दोनों जहाँ बेख़ुदी में, कुछ अजीब ही
सही, हमारी दास्ताँ ए मुहोब्बत,
हम इक दूसरे की ख़ातिर
ये सारा ज़माना
भूल गए - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
मानोस- परिचित
beyond the window
की ख़ामोशी, ज़माने से बेख़ौफ़
यकजा ज़हर पीने की
ख़्वाहिश, न
चाँद
नज़र आया, न शब का गुज़रना याद - -
रहा, उफ़क़ पे हंगामा सा बरपा,
मुक़्तसर रात और तवील
ज़िन्दगी, यूँ गुज़री
हम अक्स
अपना
भूल गए, मंदिर ओ मस्जिदों में इश्तहार
ए गुमशुदगी लगा गया कोई,
हर सू थे यूँ तो मानोस
चेहरे, फिर भी न
जाने क्यूँ,
हम
अपना ठिकाना भूल गए, हमें तो मिल गए
दोनों जहाँ बेख़ुदी में, कुछ अजीब ही
सही, हमारी दास्ताँ ए मुहोब्बत,
हम इक दूसरे की ख़ातिर
ये सारा ज़माना
भूल गए - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
मानोस- परिचित
beyond the window
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें