11 जुलाई, 2014

परिंदों का जहाँ - -

 शायद इक नया आसमां खोजता हूँ, ऊँचे
सब्ज़, सायादार दरख़्तों में आबाद
कहीं, इक परिंदों का जहाँ
खोजता हूँ, न लगे
जिसको
कभी बाज़ ए नज़र, खिलते रहें शाख़ों में
गुल यूँ ही आठों पहर, महफ़ूज़ रहे
हर मौसम में जो, सदाबहार
की मानिंद, इसलिए
कोई जां निसार
बाग़बाँ
खोजता हूँ, न मंदिर, न मस्जिद, न किसी
गुम, गौहर ए ख़ुदाई की तलाश है,
जो जोड़ सके दिलों को, दरारों
के बग़ैर, ऐसा कोई सफ़ाफ़
दिल मेहरबां खोजता
हूँ, सायादार
दरख़्तों में आबाद कहीं, इक परिंदों का - -
जहाँ खोजता हूँ - -
* *
- शांतनु सान्याल

गौहर ए ख़ुदाई - दिव्य रत्न

http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
poetic colage

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