गुम, तमाम रात, दिल मेरा
यूँ ही जलता बुझता
रहा मद्धम -
मद्धम,
सांसों में थी इक अजीब सी बेकली,
धड़कनों की रफ़्तार जानलेवा,
कल रात न जाने कहाँ
थे ये दुनिया वाले
और न जाने
कहाँ थे
हम, हर सिम्त था इक कोहराम - -
सा बरपा हुआ, हर गली ओ
चौराहे में थी भीड़ सी
लगी हुई, फिर
भी न
पहचान पाए लोग हमें, जबकि हम
गुज़रे दरमियान उनके बेख़ौफ़
बेपर्दा, पैरों तले था इक
राह पिघलता हुआ,
इसके सिवा
हमें कुछ
भी याद न रहा, इक मुसलसल - -
दहन थी हमारी दुनिया !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
lilac emotion
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