29 जुलाई, 2014

बाज़ार ए हिराज - -

 न जाने कैसी बेबसी थी उनको,
देखता रहा यूँ ख़ामोश
खड़ा सारा समाज,
ये कैसी
तहज़ीब ओ सफ़ाक़त का मंज़र
था नज़र के सामने, कि फिर
सजी, खुलेआम बाज़ार
ए हिराज,
इस दौर को क्या नाम दें, हर - -
चीज़ यहाँ है बिकने को
तैयार, न रहा अब
कोई शाहजहाँ,
न कोई
रूहे मुमताज़, कहने को यूँ तो
है हर दिल में यहाँ, इक
ताजमहल, ख़ूबसूरत
बहोत लेकिन
बग़ैर
आवाज़, बेड़ियों में घुटती हुई
हो जैसे परवाज़।

* *
- शांतनु सान्याल
अर्थ : 
तहज़ीब ओ सफ़ाक़त  - सभ्यता और संस्कृति
बाज़ार ए हिराज - नीलामी बाज़ार
परवाज़ - उड़ान
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by yuko nagayama

20 जुलाई, 2014

कुछ भी याद न रहा - -

 तारों के झूमर में कहीं आसमां था
गुम, तमाम रात, दिल मेरा
यूँ ही जलता बुझता
रहा मद्धम -
मद्धम,
सांसों में थी इक अजीब सी बेकली,
धड़कनों की रफ़्तार जानलेवा,
कल रात न जाने कहाँ
थे ये दुनिया वाले
और न जाने
कहाँ थे
हम, हर सिम्त था इक कोहराम - -
सा बरपा हुआ, हर गली ओ
चौराहे में थी भीड़ सी
लगी हुई, फिर
भी न
पहचान पाए लोग हमें, जबकि हम
गुज़रे दरमियान उनके बेख़ौफ़
बेपर्दा, पैरों तले था इक
राह पिघलता हुआ,
इसके सिवा
हमें कुछ
भी याद न रहा, इक मुसलसल - -
दहन थी हमारी दुनिया !

* *
- शांतनु सान्याल

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
lilac emotion

16 जुलाई, 2014

बाज़ी ए आतिश - -

सहमे सहमे से हैं क्यूँ तेरे अहसास,
तू मेरे क़रीब है या, कोई पिन्हां
है तेरे आसपास, न खेल
यूँ बाज़ी ए आतिश
से इसमें इक
दिन
झुलसना है लाज़िम, न खो दे कहीं
तू होश ओ हवास, कोई पिन्हां
है तेरे आसपास, मैं वो
शै हूँ जो हर दौर
में उभर
आए
गर्द ओ ग़ुबार से भी, कि मेरा इश्क़
है हमआहंग तेरी साँसों से,
अब बहोत मुश्किल
ही नहीं बल्कि
नामुमकिन
सा है
तेरा यूँ मेरे नफ़स से बाहर जाना - -

* *
- शांतनु सान्याल

 

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
flower-arrangement-in-glass-vase 
पिन्हां  - छुपा हुआ 
बाज़ी ए  आतिश  - आग का खेल 
हमआहंग  - एकाकार 
नफ़स - आत्मा

15 जुलाई, 2014

अब जा के बरसे हैं बादल - -

अब जा के बरसे हैं बादल, जब अंकुरित -
खेत मुरझा गए, वो तमाम मातबर,
रौशन फ़िक्र, राज़ ए मौसम
जान न पाए, कभी
देखा आसमां
की ओर,
कभी ज़मीं पे खींचीं अनबूझ लकीरें, ज़रा
सी बात को लफ़्ज़ों में उलझा गए,
पीर दरवेश साधु संत, न
जाने कितने रूह
मजनून,
लेकिन नबूत हक़ीक़ी दिखा न पाए, आए
ज़रूर मंज़र ए आम, देखा इक नज़र
और मुस्कुरा गए, दरअसल
ये तमाम ख़शुनत ओ
वहशीपन है
सिर्फ़
जूनून आरज़ी, किसने देखा है ख़ूबसूरत -
सिफ़र को, अपने पराए जो भी आए
बेवजह दिल ओ दिमाग़ बहका
गए, अब जा के बरसे हैं
बादल, जब अंकुरित
खेत मुरझा
गए.

* *
- शांतनु सान्याल

Joe Cartwright's Watercolor Blog
 http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
 मातबर - जवाबदार 
नबूत हक़ीक़ी- सत्य  भविष्यवाणी
ख़शुनत - हिंसा 
 
आरज़ी - अस्थायी 

11 जुलाई, 2014

परिंदों का जहाँ - -

 शायद इक नया आसमां खोजता हूँ, ऊँचे
सब्ज़, सायादार दरख़्तों में आबाद
कहीं, इक परिंदों का जहाँ
खोजता हूँ, न लगे
जिसको
कभी बाज़ ए नज़र, खिलते रहें शाख़ों में
गुल यूँ ही आठों पहर, महफ़ूज़ रहे
हर मौसम में जो, सदाबहार
की मानिंद, इसलिए
कोई जां निसार
बाग़बाँ
खोजता हूँ, न मंदिर, न मस्जिद, न किसी
गुम, गौहर ए ख़ुदाई की तलाश है,
जो जोड़ सके दिलों को, दरारों
के बग़ैर, ऐसा कोई सफ़ाफ़
दिल मेहरबां खोजता
हूँ, सायादार
दरख़्तों में आबाद कहीं, इक परिंदों का - -
जहाँ खोजता हूँ - -
* *
- शांतनु सान्याल

गौहर ए ख़ुदाई - दिव्य रत्न

http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
poetic colage

10 जुलाई, 2014

भूल गए - -

इक आग की बारिश, और अंतहीन रात
की ख़ामोशी, ज़माने  से बेख़ौफ़
यकजा ज़हर पीने की
ख़्वाहिश, न
चाँद
नज़र आया, न शब का गुज़रना याद - -
रहा, उफ़क़ पे हंगामा सा बरपा,
मुक़्तसर रात और तवील
ज़िन्दगी, यूँ गुज़री
हम अक्स
अपना
भूल गए, मंदिर ओ मस्जिदों में इश्तहार
ए गुमशुदगी लगा गया कोई,
हर सू थे यूँ तो मानोस
चेहरे, फिर भी न
जाने क्यूँ,
हम
अपना ठिकाना भूल गए, हमें तो मिल गए
दोनों जहाँ बेख़ुदी में, कुछ अजीब ही
सही, हमारी दास्ताँ ए मुहोब्बत,
हम इक दूसरे की ख़ातिर
ये सारा ज़माना
भूल गए - -

* *
- शांतनु सान्याल
 http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
  मानोस- परिचित
beyond the window

08 जुलाई, 2014

बंजारे बादल - -

जाने किस ओर मुड़ गए सभी वो  बंजारे बादल 
 देख सूखी रिश्तों की बेल, हम बहोत परेशां हुए,

 
जोगी जैसा चेहरा, मरहमी वो दुवागो वाले हाथ  

आमीन से पहले, न जाने क्यूँकर लहुलुहान हुए,
 
बूढ़ा बरगद, सुरमई सांझ, परिंदों का कोलाहल 
पलक झपकते, जाने क्यूँ अचानक सुनसान हुए, 

 
खो से गए कहीं दूर, मुस्कराहटों के  वो झुरमुट 
आईने का शहर, और भीड़ में हम अनजान हुए,

 
स्याह, ख़ामोश, बेजान, बंद खिड़की ओ दरवाज़े 
संग-ए-दिल, मुसलसल दस्तक, हम पशेमां  हुए ,

 
उम्र भर दोहराया,आयत, श्लोक, पाक किताबें -
मासूम की चीख न समझे, यक़ीनन बेईमान हुए ,

 
जाने किस देश में बरसेंगे मोहब्बत के बादल !
ये ज़मीं, गुल-ओ-दरख़्त, लेकिन वीरान हुए ,

 
----शांतनु सान्याल

 http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
 waiting-out-the-squall-sam-sidders

03 जुलाई, 2014

हम बहोत दूर निकल आए - -

थक सी चली है दूर सितारों की महफ़िल,
आसमान भी कुछ, ऊंघता सा नज़र 
आए, तेरे इश्क़ में हम न 
जाने कहाँ से कहाँ 
तक चले 
आए, 
टूट चुकी हैं सभी ज़माने की ज़ंजीरें, न -
रोक पायीं हमें ऊँची मीनारों की 
दुनिया, देखना है अब हमें 
ये क़िस्मत कहाँ ले 
जाए, बिन 
पंख 
परवाज़ लिए हम उड़ रहे हैं राहे फ़लक 
में, बहोत दूर छूट चुकी ज़मीं की 
हक़ीक़त, सुलगते सरहदों 
की तपिश, हम पहुँच 
चुके हैं ऐसी 
जगह,
जहाँ कुछ भी तफ़ावत नहीं इंसानों के - 
दरमियां, जहाँ बसती है ख़ालिस 
रूहों की दुनिया, मुहोब्बत 
और असल ईमां की 
दुनिया, तमाम 
फ़लसफ़े 
जहाँ 
हो जाएं बेमानी, महज़ इंसानियत रहे 
बाक़ी, अफ़सोस ! तमाम वाक़िफ़ 
चेहरों से हम बहोत दूर 
निकल आए - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by daniel edmonds.jpg 2.jpg

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past