आसमां मिले, कोई रहे न रहे
तेरे आसपास, लेकिन
तुझे रौशनी में
डूबा हुआ
कारवां मिले, मिन्नतों की सदा - -
लौटती नहीं बाज़गश्त बन
कर, दरगाह से बढ़
कर तेरे दिल
को इक
पाकीज़ा मकां मिले, तेरी निगाहों में
हो अक्स इंसानियत, कि राह
शोज़िश में भी तुझे कहीं
न कहीं सादिक़
रहनुमां
मिले, यूँ तो ज़माने की इस भीड़ में -
फ़ेहरिश्त ए हमदर्द है बहुत
लम्बी, जो आदमी को
समझे सिर्फ़
आदमी !
नाम निहाद कोई तो सच्चा इन्सां -
मिले।
* *
- शांतनु सान्याल
बाज़गश्त - प्रतिध्वनि
शोज़िश - जलता हुआ
सादिक़ - ईमानदार
नाम निहाद - तथा कथित
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by RoseAnn Hayes
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