05 जून, 2014

बहुत दूर कहीं - -

फिर कोई रात ढले, सजा गया 
ख़ुश्बुओं से शून्य बरामदा, 
दिल की परतों पे अब 
तलक हैं शबनमी 
अहसास, वो 
कोई 
ख़्वाब था या जागी नज़रों का 
भरम, कहना है बहोत 
मुश्किल, तमाम 
रात, जिस्म 
वो रूह 
थे गुम किसी अनजान द्वीप 
में, जुगनुओं के सिवा, 
वहां कोई न था 
राज़दार
अपना, हम जा चुके हैं बहोत 
दूर तेरी महफ़िल से 
ये दुनिया 
वालों !

* * 
- शांतनु सान्याल 
  

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by ledent pol

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