अजायबघर की तरह कभी कभी
अहसास हो जाते हैं बहोत
ख़ामोश, निर्जीव से,
काँच के डिब्बों
में बंद !
जीवित अंगों में अदृश्य जीवाश्म
की प्रक्रिया ! दरअसल हम
ख़ुद से निकलना ही
नहीं चाहते, जाने
अनजाने
फँसे
रहते हैं रेशमकोश के मध्य, और
ख़ूबसूरत मौसम बदल जाते
हैं निःशब्द, रफ़्तार भरी
इस दुनिया में कोई
किसी के लिए
नहीं रुकता,
जब
बाहर आने की ख़्वाहिश जागती
है दिल में, तब रहता है बाक़ी
राहों में बिखरे हुए सूखे
पत्तों के ढेर - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by linda blondheim.jpg 1
अहसास हो जाते हैं बहोत
ख़ामोश, निर्जीव से,
काँच के डिब्बों
में बंद !
जीवित अंगों में अदृश्य जीवाश्म
की प्रक्रिया ! दरअसल हम
ख़ुद से निकलना ही
नहीं चाहते, जाने
अनजाने
फँसे
रहते हैं रेशमकोश के मध्य, और
ख़ूबसूरत मौसम बदल जाते
हैं निःशब्द, रफ़्तार भरी
इस दुनिया में कोई
किसी के लिए
नहीं रुकता,
जब
बाहर आने की ख़्वाहिश जागती
है दिल में, तब रहता है बाक़ी
राहों में बिखरे हुए सूखे
पत्तों के ढेर - -
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- शांतनु सान्याल
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