12 जून, 2014

इक लम्हा कोई - -

इक लम्हा कोई तेरी ओंठों से -
चुराया हुआ, मुद्दतों से 
हम, जिसे सीने 
से लगाए 
बैठे 
हैं, उठ रहे हैं बादलों के बवंडर,
रह रह कर, न जाने किस 
हसरत में, तहे दिल 
हम इक चिराग़ 
जलाए बैठे 
हैं, दूर 
तक है बिखरी हुई ख़मोशियाँ,
आसमां भी है कुछ 
बदगुमां सा,
फिर भी 
न 
जाने क्यूँ हम, निगाहों में इक 
जहान ए रौशनी सजाए 
बैठे हैं, ये सच है, कि 
तेरी दुनिया में 
मेरी 
हस्ती, इक बूँद से ज़्यादा कुछ 
भी नहीं, फिर भी न जाने 
क्यूँ  दिल में, हम 
समंदर की 
आस 
लगाए बैठे हैं, इक लम्हा कोई 
तेरी ओंठों से चुराया हुआ, 
मुद्दतों से हम, जिसे 
सीने से लगाए 
बैठे हैं - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
oil painting by Doris Joa

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