चुराया हुआ, मुद्दतों से
हम, जिसे सीने
से लगाए
बैठे
हैं, उठ रहे हैं बादलों के बवंडर,
रह रह कर, न जाने किस
हसरत में, तहे दिल
हम इक चिराग़
जलाए बैठे
हैं, दूर
तक है बिखरी हुई ख़मोशियाँ,
आसमां भी है कुछ
बदगुमां सा,
फिर भी
न
जाने क्यूँ हम, निगाहों में इक
जहान ए रौशनी सजाए
बैठे हैं, ये सच है, कि
तेरी दुनिया में
मेरी
हस्ती, इक बूँद से ज़्यादा कुछ
भी नहीं, फिर भी न जाने
क्यूँ दिल में, हम
समंदर की
आस
लगाए बैठे हैं, इक लम्हा कोई
तेरी ओंठों से चुराया हुआ,
मुद्दतों से हम, जिसे
सीने से लगाए
बैठे हैं - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
oil painting by Doris Joa
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