न जाने क्या था दिल में उसके, मुझे न थी
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ख़बर ज़रा, उन आँखों ने मुझे ले
डूबा न जाने कहाँ, इक
अंतहीन सफ़र
और दूर
है किनारा, बहरहाल अब तेरी महफ़िल में
लौटना है मुश्किल, अब कोई आवाज़
छूती नहीं मुझको, न कर यूँ
टूटकर इंतज़ार लौटती
सदा का !
अभी तलक है जवां वादी ए ज़िन्दगी, फिर
कोई सुलहनामा पे कर ले दश्तख़त,
कि दहलीज़ पे रुका रुका सा
है मौसम ए बहार, न
कर यूँ फ़रेब
ख़ुद से,
कि ज़िन्दगी का सफ़र नहीं इतना आसां - -
* *
- शांतनु सान्याल
art by MAILEE FORDhttp://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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