इक तटबंध है मेरा वजूद, तू इक नदी अबाध्य
बेक़ाबू ! वो प्रणय जो तुझे बाँध ले गहन
अंतर्मन, जीवन चाहे वो उपासना
अंतहीन, वो पावन चाहत
जो ले जाए जीवन
परम सत्य
की ओर, पाए देह व प्राण परिपूर्ण सार्थकता - -
इक अहसास जो महके अन्दर - बाहर
छद्म विहीन, कर जाए आत्म -
विभोर हर सिम्त
हर ओर !
वो समर्पण जो हो अनश्वर ज्वलंत अग्नि के
भी ऊपर !
* *
art by ALBERT BIERSTADT
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