हैरां हूँ मैं, देख तेरी नज़र की रौशनी !
हर सिम्त है फैला इक अहसास
आसमानी, नूर महताब
है इश्क़ तेरा, जाए
दिल के बहोत
अन्दर,
हर चेहरे पे नज़र आये अक्स ताबां,
अँधेरे उठा चले गोया ग़मगीन
ख़ेमा, उभर चली है ज़मीर
की ख़ूबसूरती, इक
ख़ुद तज़जिया
जज़्बात
है बेक़रार, ज़िन्दगी को मुक्कमल - -
मुतासिर कर जाने को - -
* *
- शांतनु सान्याल
09 मई, 2013
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