न पूछ तन्हाई का आलम बिछुड़ जाने के बाद,
न सुलग पाए, फिर चिराग़ ए जज़्बात
इक बार बुझ जाने के बाद, बहोत
चाहा, बहोत समझाया, न
बस पायी दिल की
बस्ती दोबारा,
उजड़ जाने के बाद, यूँ तो राहतों के नामज़द - -
कम न थे, फिर भी लाइलाज ही रहा
दर्दे जिगर चोट खाने के बाद,
बेअख्तियार वजूद
मेरा, रूह भी
भटके सहरानशीं, सितारा शिकस्ता कोई, है - -
अब नसीब मेरा, इक अदद सिफ़र के
सिवा ज़िन्दगी अब कुछ भी
नहीं, कि लहराती हो
जैसे कोई कटी
पतंग ज़मीं
ओ आसमां के दरमियाँ डोर से टूट जाने के बाद,
* *
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (06-05-2013) फिर एक गुज़ारिश :चर्चामंच 1236 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहराओं में कहाँ सलमा सितारे चमकते हैं..,
जवाब देंहटाएंसब्जज़ारो में ही गौहरे-अल्मास दमकते हैं.....
love and regards dear friend with respect
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