06 मई, 2013

इक अदद सिफ़र - -

न पूछ तन्हाई का आलम बिछुड़ जाने के बाद,
न सुलग पाए, फिर चिराग़ ए जज़्बात 
इक बार बुझ जाने के बाद, बहोत 
चाहा, बहोत समझाया, न 
बस पायी दिल की 
बस्ती दोबारा, 
उजड़ जाने के बाद, यूँ तो राहतों के नामज़द - -
कम न थे, फिर भी लाइलाज ही रहा 
दर्दे जिगर चोट खाने के बाद,
बेअख्तियार वजूद 
मेरा, रूह भी 
भटके सहरानशीं, सितारा शिकस्ता कोई, है - -
अब नसीब मेरा, इक अदद सिफ़र के 
सिवा ज़िन्दगी अब कुछ भी 
नहीं, कि लहराती हो 
जैसे कोई कटी 
पतंग ज़मीं 
ओ आसमां के दरमियाँ डोर से टूट जाने के बाद,
* * 
- शांतनु सान्याल   
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by Thomas Houck

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (06-05-2013) फिर एक गुज़ारिश :चर्चामंच 1236 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सहराओं में कहाँ सलमा सितारे चमकते हैं..,
    सब्जज़ारो में ही गौहरे-अल्मास दमकते हैं.....

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