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तारों की मौजूदगी है कुछ कम, न
जाने कहाँ गए वो ज़रिया
ए रौशनी, कि चाँद
भी है गुमसुम,
सहमी
सहमी सी है चांदनी ! इक अजीब सी -
ख़ामोशी रही दरमियां अपने, न
तुम कुछ कह सके, और
न ही हम दिखा
पाए दाग़
ए दिल अपना, सिफ़र में देखते रहे रात
भर, मेरी सांसों में थी ख़ुशबू तेरी
चाहतों की पुरअसर , लेकिन
न तुम समझ पाए
और न हम ही
दिखा
पाए वो नुक़ता ए मरकज़ जहाँ खिलते हैं -
गुल जावेदां ख़ूबसूरत - -
* *
- शांतनु सान्याल
इजलास ख़ुफ़िया -- गुप्त सम्मलेन
जावेदां - अमर
नुक़ता ए मरकज़ - केंद्र बिंदु
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