31 मार्च, 2013

रात ढलते - -

मुश्किल इतना भी न था, कि दोबारा न मिलते,
भूल जाने का सबब कुछ और रहा होगा,
नफ़स में शामिल होने का भरोसा
न था, इतना भी नाज़ुक,
क़सम लेकर
मुकर
जाने का सबब कुछ और रहा होगा, बाख़बर -
हूँ इस आवारगी ए मौसम से, पल में
धूप खिले, पल में दूर तक हो
अँधेरा, ये बहाना लेकिन
क़ाबिल ए ऐतमाद
नहीं, वादा
लेकर
मंज़िल बिसर जाने का सबब कुछ और रहा
होगा, इक ख़ामोश, निगाह ए क़रार
था दरमियां अपने, गवाह कोई
नहीं सिवा तबादिल  
ए साँस के,
रात ढलते बूंद बूंद शबनमी अहसास में यूँ
बिखर जाने का सबब कुछ और
रहा होगा - -
* *
- शांतनु सान्याल

3 टिप्‍पणियां:

  1. मूर्खता दिवस की मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (01-04-2013) के चर्चा मंच-1181 पर भी होगी!
    सूचनार्थ ...सादर..!

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past