यक़ीनन वो मैं नहीं, जो तेरी ख़्वाबों में -
artist svetlana novikova
उभरता है, इक जाम छलकता
हुआ सा, या कोई साहिर
चाँद रात का, भरता
हो ख़ुशबू जो
फूलों
में शब गहराते, वो मैं नहीं जो तेरी पेशानी
में तारों की झालर सजाए, चश्म ए
साहिल पे ज़िन्दगी लुटाये,
बेहद मुश्किल है
मेरी जां
तसव्वुर को यूँ हक़ीक़त में बदलना, तपते
सहरा से निकल, जज़्बात के दिलकश
कहकशाँ पर चलना - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
artist svetlana novikova
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