वो आज फिर मेरी, अंदरूनी गहराई खंगाल गया,
गोया ख़ामोश ज़मीर पे यूँ सुलगती लौ डाल गया,
तमाशबीनों की भीड़ में, अपने भी अजनबी लगे,
लड़खड़ाने के पहले, नाआशना कोई संभाल गया,
उस रास्ते की सभी बत्तियां थीं, मुद्दतों से बुझी -
न जाने वो कौन था,जो अंधेरों से यूँ निकाल गया,
हर एक की नज़र में था वो इक उभरता सितारा,
आख़िर शब न जाने क्यूँ वो, बहोत बदहाल गया,
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- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंthanks respected friend - -
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